Wednesday, November 5, 2008

मधुशाला से कुछ जाम

यात्रा में पहला पैर दायां उठना चाहिए या बायाँ? याद नही आ रहा है - किसी से पूछों तो अपने विद्वता के भ्रम को खतरा है। मैं ऐसा करता हूँ कि दोनों पैरों को एक साथ ही उठाता हूँ और कूदी मार कर इस ब्लॉग की यात्रा प्रारम्भ करता हूँ।
बच्चन जी की मधुशाला मेरी कमजोरी है, मैं मधुशाला से कुछ जाम लेकर यह यात्रा प्रारम्भ करूंगा।






मदिरालय जाने को घर से चलता है पीनेवला,‘
किस पथ से जाऊँ?’ असमंजस में है वह भोलाभाला,
अलग-अलग पथ बतलाते सब पर मैं यह बतलाता हूँ
-‘राह पकड़ तू एक चला चल, पा जाएगा मधुशाला।

मदिरा पीने की अभिलाषा ही बन जाए जब हाला,
अधरों की आतुरता में ही जब आभासित हो प्याला,
बने ध्यान ही करते-करते जब साकी साकार, सखे,
रहे न हाला, प्याला, साकी, तुझे मिलेगी मधुशाला।

जगती की शीतल हाला सी पथिक, नहीं मेरी हाला,
जगती के ठंडे प्याले सा पथिक, नहीं मेरा प्याला,
जलते सुरा जलते प्याले में दग्ध हृदय की कविता है,
जलने से भयभीत न जो हो, आए मेरी मधुशाला।

आज अपना प्रलाप कुछ नहीं करूंगा। आप सभी को दीपावली की बिलम्बित शुभकामनाएं।

ओमप्रकाश अगरवाला

7 comments:

गोविंद गोयल, श्रीगंगानगर said...

aapki yatra shub ho aapko manjilmile
narayan narayan

अभिषेक मिश्र said...

Acchi shuruaat ki hai apni yatra ki aapne. Yatra ke kram mein mere blog par bhi padharein. Swagat.

Amit K Sagar said...

ब्लोगिंग जगत में आपका हार्दिक स्वागत है. लिखते रहिये. दूसरों को राह दिखाते रहिये. आगे बढ़ते रहिये, अपने साथ-साथ औरों को भी आगे बढाते रहिये. शुभकामनाएं.
--
साथ ही आप मेरे ब्लोग्स पर सादर आमंत्रित हैं. धन्यवाद.

दिगम्बर नासवा said...

आपकी यात्रा मंगल मय हो

मेरे ब्लॉग पर भी सादर आमंत्रित हैं

ओमप्रकाश अगरवाला said...

आजादी समझदारों के लिए वरदान है, अन्य के लिए... बताना जरूरी थोड़े ही है, अपने देश का वोटिंग pattern कुछ नहीं कह रहा है?

Omprakash

makrand said...

madhushala ..............
arambh itna accha
bahut khub
yatra me apka sathi sabhi he
regards

रचना गौड़ ’भारती’ said...

ब्लोगिंग जगत में आपका हार्दिक स्वागत है. लिखते रहिये. शुभकामनाएं.
बच्चन जी के साथ साथ आप मेरे ब्लोग्स पर भी कविता और गज़ल के लिए सादर आमंत्रित हैं. धन्यवाद.