बच्चन जी की मधुशाला मेरी कमजोरी है, मैं मधुशाला से कुछ जाम लेकर यह यात्रा प्रारम्भ करूंगा।
मदिरालय जाने को घर से चलता है पीनेवला,‘
किस पथ से जाऊँ?’ असमंजस में है वह भोलाभाला,
अलग-अलग पथ बतलाते सब पर मैं यह बतलाता हूँ
-‘राह पकड़ तू एक चला चल, पा जाएगा मधुशाला।
मदिरा पीने की अभिलाषा ही बन जाए जब हाला,
अधरों की आतुरता में ही जब आभासित हो प्याला,

बने ध्यान ही करते-करते जब साकी साकार, सखे,
रहे न हाला, प्याला, साकी, तुझे मिलेगी मधुशाला।
जगती की शीतल हाला सी पथिक, नहीं मेरी हाला,
जगती के ठंडे प्याले सा पथिक, नहीं मेरा प्याला,
जलते सुरा जलते प्याले में दग्ध हृदय की कविता है,
जलने से भयभीत न जो हो, आए मेरी मधुशाला।
आज अपना प्रलाप कुछ नहीं करूंगा। आप सभी को दीपावली की बिलम्बित शुभकामनाएं।
ओमप्रकाश अगरवाला
7 comments:
aapki yatra shub ho aapko manjilmile
narayan narayan
Acchi shuruaat ki hai apni yatra ki aapne. Yatra ke kram mein mere blog par bhi padharein. Swagat.
ब्लोगिंग जगत में आपका हार्दिक स्वागत है. लिखते रहिये. दूसरों को राह दिखाते रहिये. आगे बढ़ते रहिये, अपने साथ-साथ औरों को भी आगे बढाते रहिये. शुभकामनाएं.
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साथ ही आप मेरे ब्लोग्स पर सादर आमंत्रित हैं. धन्यवाद.
आपकी यात्रा मंगल मय हो
मेरे ब्लॉग पर भी सादर आमंत्रित हैं
आजादी समझदारों के लिए वरदान है, अन्य के लिए... बताना जरूरी थोड़े ही है, अपने देश का वोटिंग pattern कुछ नहीं कह रहा है?
Omprakash
madhushala ..............
arambh itna accha
bahut khub
yatra me apka sathi sabhi he
regards
ब्लोगिंग जगत में आपका हार्दिक स्वागत है. लिखते रहिये. शुभकामनाएं.
बच्चन जी के साथ साथ आप मेरे ब्लोग्स पर भी कविता और गज़ल के लिए सादर आमंत्रित हैं. धन्यवाद.
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