Monday, November 10, 2008

काली बिल्ली

रीती -रिवाज़, परम्पराएँ ये ऐसे शब्द जो ज्यादातः उन लोगो द्वारा कहे जाते हैं जो
इन शंब्दों का सही अर्थ तक नहीं जानते। वैसे ही ये शब्द उन लोगों पर ज्यादा प्रभाव छोड़ते हैं जो इस शब्दों का सही मतलब ही नहीं समझते। रीती रिवाज़ और परम्पराओं के नाम पर हमारे समाज में जाने अनजाने कुछ ऐसे कार्य शामिल कर लिए गएँ है या कुछ ऐसे कार्यों को अनिवार्य बना लिया गया है, जिन की आज कोई प्रासंगिकता ही नहीं है। इस गूढ़ बिषय पर हम फिर कभी चर्चा करेंगे, फिलहाल आप पाठकों के सामने एक घटना परोसना चाहूँगा. घटना यूँ बयां की जा सकती है....

शादी कर एक बहु रानी अपने ससुराल आयी। कुछ दिनों बाद ससुराल में उसकी एक मात्र ननद की शादी का शुभ अवसर आया। एक अच्छी सास की तरह उक्त बहु की सास भी सारे कार्यो में बहु को अपने साथ रख रही थी , ताकि बहु उस परिवार (कबीले) की परम्पराएँ/ रिती -रिवाज़ अच्छी तरह सीख ले। बहु भी मन से सरे रिती- रीवाजों को अच्छे से देख रही थी।
शादी के घर में एक काली बिल्ली पाली हुई थी। सासू जी ने सोचा की घर में शुभ कार्य हो रहा है, और यह बिल्ली आते जातों का रास्ता काट कर अपशकुन न करें, और उन्होंने नाई से कह कर उस बिल्ली को एक खंभे से बंधवा दिया। शादी सकुशल हो गयी। बिल्ली को भी मुक्त कर दिया गया।
समय चक्र चलता रहा। उसी घर में आज एक और शादी हो रही है। शादी हो रही है उस बहु की बड़ी बेटी की। सासुजी दीवार पर लटकी अपनी तस्वीर से आशीर्वाद दे रही है। बरात आने का वक्त होने लगा है। अचानक लड़की की माँ (बहू) को ध्यान आता है और नाई को तुंरत बुलवाया जाता है और उसे कहा जाता है की जल्द से जल्द जा कर कहीं से एक काली बिल्ली ले कर आए और उसे खम्भे से बाँध दे। परिवार की रीतियों का पालन होना जरूरी है। नाई काली बिल्ली ले कर आता है और उस काली बिल्ली को खंभे से बाँधा जाता है और तब शादी की बाकी रस्में निभायी जाती है।

ऐसी न जाने कितनी काली बिल्लिया आज भी हमारे आंगनों में ऐसी रीतियों के नाम से बाँधी जा रहीं है... है न ?

यदि आप मेरे इस बिचार को आगे बढ़ाना चाहें या इस पर कुछ कहना चाहें, तो स्वागत है आपका।

1 comment:

makrand said...

ऐसी न जाने कितनी काली बिल्लिया आज भी हमारे आंगनों में ऐसी रीतियों के नाम से बाँधी जा रहीं है... है न ?
bahut sahi kaha aapne