Monday, November 17, 2008

फतवा और भी जारी करना है.

लो भाई लोगो, समझदारों ने अब मधुशाला जैसी रचनाओं को पढना शरु कर दिया है। अब कैसे बर्दास्त करें भाई, अपने मजहब या मजहब स्थल पर ऐसी बातें? कर दिया जारी फतवा, जो करना है आप कर लो। हमारा तो नाम ही होगा न भाई? हिम्मत कैसे हुई किसी की कि मधुशाला को मजहब स्थल से बेहतर बताये। प्रतिक, उर्तिक क्या होता है? प्रतिक उर्तिक कि बात कर के हमें बेवकूफ बनाना चाहते हैं क्या आप लोग? अमिताभ जी ध्यान रखियेगा, बाबूजी को याद करते समय पब्लिक में मधुशाला मत गुनगुना लीजियेगा। अब पहले वाली बात नही रही है, अब हम भी मधुशाला जैसी धर्म बिरोधी रचनाओं को समझ सकते हैं।
सुना है, कोई एक कबीर नाम का भी साहित्यकार हुवा करता था, और उसने भी मुल्ला के बांग देने जैसी धर्म बिरोधी बातें कहीं है। अपने आदमी लगा दिये हैं जानकारी लेने को, एक फतवा उस पर भी जारी करना पड़ेगा। उमर खैयाम पर भी हम रिसर्च कर रहें हैं, उसकी ख़बर भी लेंगे। आप भी लोग भी ध्यान रखियेगा, ऐसा कोई भी लेख, कविता (भले ही कितना ही पुराना हो) आप कि नज़र में आए तो हमें बताइयेगा। अब कोई नहीं बचेगा, हम समझदार हो गए हैं।

3 comments:

Anonymous said...

Bhai wah. Kya Fatwa jaari kiya hai aapne.

Dhanyabad

Dilip

Anonymous said...

Bhai wah. Kya Fatwa jaari kiya hai aapne.

Dhanyabad

Dilip

Anonymous said...

Achcha likha hai. Binod Ringania