Friday, November 28, 2008

जबरदस्त तमाचा है हिन्दुस्थान के गाल पर।

मुंबई में जो हुवा वो एक और जबरदस्त तमाचा है अपने हिन्दुस्थान के गाल पर। मुझे नहीं लगता किसी भी राजनेता को कोई गुस्सा भी आया होगा उनके इस दुस्साहस पर। हर थोड़े दिनों पर कोई न कोई घटना और हमेशा एक ही बहाना- Intelligency Failure।
१ अरब से ज्यादा लोगों के इस देश को एक छोटा सा देश लगातार परेशान कर रहा है, और हमारे नेताजी हैं कि दोस्ती की बातें कर रहें है। क्या ६० बर्षों का अनुभव कम है किसी को परखने के लिए? धर्म और जातियों के आधार पर लोगों को बांटते बांटते अब इन लोगो ने आतंकियों पर भी धर्म/मजहब और जातियों का लेबल चस्पां कर दिया है।

शर्म कि बात है कि माननीय सुप्रीम कोर्ट द्वारा फांसी की सजा सुनाये जाने के इतने दिनों बाद भी अफज़ल साहब को फांसी नहीं हुई। कोई बताने का कष्ट करेगा- क्यों? माफ़ी का आवेदन इतने दिनों तक ऐसे ही क्यों पड़ा हुवा है? अफज़ल साहब के आकाओं को खुश करने का प्रयास नहीं तो और क्या है यह? माफ़ नहीं कर रहे हैं - इस लिए हिंदू वोट पक्का और फांसी नहीं दे रहे हैं इस लिए मुस्लिम वोट पक्का! क्या समझ रखा है इन नेताओं ने हम हिन्दुस्थानियों को?

मुझे डर है कि इस घटना में भी पकड़े गए आतंकवादियों को ये लोग सजा नहीं होने देंगे। वाले वक्त में ऐसे ना जाने कितने अफज़ल हिन्दुस्थान की छाती पर मूंग दलते रहेंगे। हमें दुश्मनों की भला कहाँ जरूरत है, हमने तो सौंप पाल रखे हैं आस्तीनों में।

7 comments:

सुमो said...

कैसा लगा तमाचा?
हमारे गांधी बाबा ने कहा है कि कोई एक गाल पर तमाचा मारे तो दूसरा गाल आगे कर दो.

Anonymous said...

काश ऐसी किसी घटना में ये नेता टारगेट बने तब ही इनके किए की इनको सजा मिले | रही बात इंटेलिजेंस की वो तो इस देश में है ही नही विदेशी इंटेलिजेंस हमें सुचना देती है कि आपके घर में कोई गड़बड़ होने वाली है फ़िर भी हम और हमारी पुलिस उसे रोक नही पाती |

Mohinder56 said...

सुमो जी ने मेरे मन की बात कह दी....

जो जिस जुबान को समझता है यदि उसे उसी भाषा में न समझाया जाये तो कोई फ़ायदा नहीं होता..

Unknown said...

सुमो से सहमत

Anil Pusadkar said...

अभी तो गाल पे तमाचा पडा है,अभी लात पडनी बाकी है तब् पता चलेगा.

Pt. D.K. Sharma "Vatsa" said...

यह शोक का दिन नहीं,
यह आक्रोश का दिन भी नहीं है।
यह युद्ध का आरंभ है,
भारत और भारत-वासियों के विरुद्ध
हमला हुआ है।
समूचा भारत और भारत-वासी
हमलावरों के विरुद्ध
युद्ध पर हैं।
तब तक युद्ध पर हैं,
जब तक आतंकवाद के विरुद्ध
हासिल नहीं कर ली जाती
अंतिम विजय ।
जब युद्ध होता है
तब ड्यूटी पर होता है
पूरा देश ।
ड्यूटी में होता है
न कोई शोक और
न ही कोई हर्ष।
बस होता है अहसास
अपने कर्तव्य का।
यह कोई भावनात्मक बात नहीं है,
वास्तविकता है।
देश का एक भूतपूर्व प्रधानमंत्री,
एक कवि, एक चित्रकार,
एक संवेदनशील व्यक्तित्व
विश्वनाथ प्रताप सिंह चला गया
लेकिन कहीं कोई शोक नही,
हम नहीं मना सकते शोक
कोई भी शोक
हम युद्ध पर हैं,
हम ड्यूटी पर हैं।
युद्ध में कोई हिन्दू नहीं है,
कोई मुसलमान नहीं है,
कोई मराठी, राजस्थानी,
बिहारी, तमिल या तेलुगू नहीं है।
हमारे अंदर बसे इन सभी
सज्जनों/दुर्जनों को
कत्ल कर दिया गया है।
हमें वक्त नहीं है
शोक का।
हम सिर्फ भारतीय हैं, और
युद्ध के मोर्चे पर हैं
तब तक हैं जब तक
विजय प्राप्त नहीं कर लेते
आतंकवाद पर।
एक बार जीत लें, युद्ध
विजय प्राप्त कर लें
शत्रु पर।
फिर देखेंगे
कौन बचा है? और
खेत रहा है कौन ?
कौन कौन इस बीच
कभी न आने के लिए चला गया
जीवन यात्रा छोड़ कर।
हम तभी याद करेंगे
हमारे शहीदों को,
हम तभी याद करेंगे
अपने बिछुड़ों को।
तभी मना लेंगे हम शोक,
एक साथ
विजय की खुशी के साथ।
याद रहे एक भी आंसू
छलके नहीं आँख से, तब तक
जब तक जारी है युद्ध।
आंसू जो गिरा एक भी, तो
शत्रु समझेगा, कमजोर हैं हम।
इसे कविता न समझें
यह कविता नहीं,
बयान है युद्ध की घोषणा का
युद्ध में कविता नहीं होती।
चिपकाया जाए इसे
हर चौराहा, नुक्कड़ पर
मोहल्ला और हर खंबे पर
हर ब्लाग पर
हर एक ब्लाग पर।
- कविता वाचक्नवी
साभार इस कविता को इस निवेदन के साथ कि मान्धाता सिंह के इन विचारों को आप भी अधिक से अधिक लोगों तक पहुंचकर ब्लॉग की एकता को देश की एकता बना दे

दिगम्बर नासवा said...

ठीक बात है, हम समझ ही नही पाते और दुश्मन वार पर वार करते जाते हैं

हमारी संवेदनाएं बस एयर कंडीशन कमरों तक सिमिटकर रह गयीं है
काश हम अब भी जाग जाए